भारत की स्थिति बलात्कार के मामलो में हो रही है बद से बत्तर
हम बात तो करते हैं बेटी पढ़ाओ बेटी बढ़ाओ की लेकिन,
क्या हम सच में ये कर पा रहे?
क्या सच में इस समाज में ये पूरी तरह से मुमकिन हो पाएगा?
अगर हालात यही रहे तो शायद नहीं!
कितने बढे हैं बलात्कार के आंकड़े -
नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो की 2014 की रिपोर्ट के मुताबिक देश में हर एक घंटे में 4 रेप, यानी हर 14 मिनट में 1 रेप हुआ है. दूसरे शब्दों में, साल 2014 में देश भर में कुल 36975 रेप के मामले सामने आए हैं.
इंसानियत को शर्मसार कर देने वाले ऐसे वारदातो में एक और वारदात शामिल हो गया। जी हाँ, पेशे से डॉक्टर प्रियंका रेड्डी का। मीडिया में कैंपेन चल रहे हैं, सड़कों पर विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं, और सियासत में घमासान मचा हुआ है. दोषियों को मौत की सजा देने की मांग उठ रही है. ऐसे में, अगर देश में होने वाले रेप की वारदातों में कमी के बजाय बढ़ोत्तरी देखी जा रही है तो वाकई ये संजीदा मामला है।
बलात्कार जैसी घटनाओ पे जनता की प्रतिक्रिया-
शायद ही कोई ऐसा होगा जिसने ऐसी नीच हरकत तो दंडनीय अपराध का पक्ष लिया हो, देश के सभी नागरिको के इसका कड़ा विरोध जताया है और गुनाहगारो ने सजा की मांग की है। भले की कुछ गिने चुने लोग जो सत्ता और अपने फायदे के लिए इसका गलत इस्तेमाल करते हैं लेकिन जनता इतना जानती है क्या सही है और क्या गलत।
बलात्कार जैसे निम्न हरकत को रोकने के लिए सरकार ने कई तरह से नियम बनाये, कानून पारित किये लेकिन जमीनी स्तर पे इसका कोई फायदा नहीं दिखा। आज भी ऐसा होता है कि हर 100 में 30 केस का फैसला 4 से 7 साल बाद आता है, 30 केस का फैसला हो ही नहीं पता, 20 में मामला रफा दफा करा दिया जाता है और 20 में बड़े मुशक्कत के बाद इन्साफ मिलता है।
इससे भी जादा सोंचने की बात तो ये है की कितने ही रेप के केस तो दर्ज तक नहीं किये जाते और ऐसे ही कितने समाज में बदनामी के डर से पीड़िता खुद या उसके परिजन केस दर्ज ही नहीं कराते।
क्यों नहीं बनाये जाते बलात्कार पे मौत के कानून-
अरब के जादातर देशो में बलात्कार जैसे गुनाहो की सजा मौत ही है, बल्कि कही कही तो मौत से भी खौफनाक।
लेकिन भारत में ऐसा कानून नहीं बना क्योंकि यहाँ कई मामले ऐसे भी सामने आते हैं जहाँ रेप का इल्जाम झूठा होता है,कुछ घटनाये ऐसी होती हैं जहाँ पैसे या निजी फायदे के लिए बेगुनाह को गुनहगार बनाने की कोसिस कर दी जाती है। एक हाल का ही मामला कठुआ का था जिसमे कुछ खुलासे हुए थे और पता चला था की जिस जांच टीम ने कुछ लोगो को गुनहगार बता कर पकड़ा था वो पूरी तरह से बेगुनाह है। अगर फांसी की सजा होती तो शायद ये उस लड़के के साथ ना इंसाफी होती और पीड़िता के साथ भी।
यही कारण है मौत के सजा का प्रावधान ना होना,लेकिन सरकार को अब इसके ऊपर कड़े कानून बनाने होंगे और साथ ही साथ एक ऐसे जाँच कमीटी का गठन करना होगा जो जल्द से जल्द सच सामने लाकर गुनहगारो को सजा दिलाये।
समाज में है इन बदलाव की जरुरत-
हम ये तो चाहते हैं की हमारे बच्चे मेहफ़ूज़ रहें, लेकिन हम उनसे ऐसे मामलो पर खुल के बात करने से कतराते हैं। आज के दौर में छोटे-छोटे बच्चों के पास भी मोबाइल रहता है जिससे वो बहोत सी चीजे देखते हैं और जानते हैं। कुछ चीजो के बारे में जान के मन को शांत कर लेते हैं और कुछ के मन को विचलित। ऐसे में जरुरत है की अपने बच्चों के अभिवावक के साथ ही साथ हम उनके अच्छे दोस्त बने और हर उस मामले पर खुल के बात करें जो समाज से जुड़ी हो।
बेटियों को अच्छे बुरे का ज्ञान देने के साथ-साथ अपने बेटों को भी सही और गलत में फर्क कराये। उन्हें हर अच्छे और बुरे के बारे में बताये, ताकि आपका बेटा, भाई कभी किसी का बलात्कारी ना बने।।
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