होली से पहले होलिका दहन
यूँ तो समूचे देश मे होली का पर्व बड़े धूम धाम से मनाया जाता है। होली वैसे तो हिन्दुओ का पावन रंग बिरंगा त्योहार है, लेकिन सभी धर्मों के लोग इसे मिल जुल कर मनाते हैं। होली दो दिन की होती है । फाल्गुन में शुक्ल पक्ष के चतुर्दशी के दिन होलिका दहन होता है और अगले ही दिन रंगों का त्योहार होली मनाया जाता है। होलिका दहन के अगले दिन को धुलंडी के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि जलाई गई होलिका के राख से होली खेलना शुभ माना जाता है। होली एक ऐसा त्योहार है जब सभी लोग मिल जुल कर साथ रंग और गुलाल खेलते हैं और एक दूसरे को गले लगाते हैं।
क्यों जलाते हैं होलिका-
पौराणिक कथाओं में ये उल्लेखित है कि एक क्रूर राजा हुआ करता था जिसका नाम हिरण्यकश्यप था। उसने अपने राज्य में सभी लोगो को ये आदेश दे रखा था कि कोई भी किसी परमात्मा को नही पूजेगा, सभी केवल उसकी पूजा करेंगे। लेकिन हिरण्यकश्यप का अपना ही बेटा प्रह्लाद भगवान विष्णु जी का उपासक था। प्रह्लाद को मारने के कई तरीके अपनाने के बाद भी जब हिरण्यकश्यप नाकामयाब रहा तो उसने अपने बहन होलिका को बुलवाया। क्योंकि होलिका को आग में ना जलने के वरदान प्राप्त था, वो प्रह्लाद को लेकर आग के समाधि पर बैठ गयी। लेकिन प्रह्लाद के भक्ति में इतनी शक्ति थी कि होलिका जल कर राख हो जाती है परंतु प्रह्लाद को कुछ नही होता।
एक तरह से देखा जाए तो होलिका दहन का तात्पर्य अपने अंदर के बुराइयों , स्वार्थ , ईर्ष्या का दहन।
धुलंडी का दिन -
होलिका जलाने के अगले ही दिन होली अर्थात धुलंडी मनाया जाता है। इस दिन सभी लोग रंगों और गुलालों के साथ अपने सारे दुखो ओर दर्द को भूल कर मस्त रहते हैं। घरो में पकवान बनाये जाते हैं। एक निश्चित काल के अंतराल में जलाई गई होलिका के राख से होली खेलने का भी प्रचलन है।
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